आशीष कुमार
माइग्रेन्ट नेपाली असोसिएशन ने लगभग डेढ़ महीने पहले महिपालपुर (दिल्ली) से 40 नेपाल की लड़कियों को एक गिरोह के हाथ छुड़ाकर वापस नेपाल भिजवाया। इन दिनों मायती नेपाल और नेपाल दूतावास की मदद से नेपाल की दो लड़कियों को छुड़ाए जाने की चर्चा मीडिया में है। इस मामले में सउदी दूतावास के राजनायिक पर बलात्कार का आरोप है।
लड़कियों की गिरफ्तारी भी कथित तौर पर राजनायिक के गुड़गांव स्थित घर से हुई है। वैसे अपने लोगों के रेप में शामिल होने से सउदी दूतावास बार-बार इंकार कर रहा है। माइग्रेन्ट नेपाली एसोसिएशन के गोपाल थापा की मानें तो दिल्ली एनसीआर नेपाल से लाई जाने वाली लड़कियों का एक हब बनता जा रहा है। दुख की बात यह है कि इन लड़कियों को नेपाल से लाने वाले और भारत में उन्हें रिसिव करने वाले दोनों तरफ नेपाल मूल के लोग ही हैं। इस वजह से मानव तस्करी का धंधा फल फूल रहा है।
यूएस स्टेट डिपार्टमेन्ट द्वारा तैयार ‘द ट्रेफिकिंग इन पर्सन्स रिपोर्ट’ में नेपाल को टियर 02 में रखा गया है, जिसका अर्थ है, ऐसा देश या सरकार जो मानव तस्करी के उन्मूलन के लिए न्यूनतम मानकों का पालन नहीं कर रही है, हालांकि वह ऐसा करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रही है। वैसे नेपाल से भारत में होने वाली मानव तस्करी अनियंत्रित है।
एक अनुमान के अनुसार पांच हजार से दस हजार युवतियां और महिलाएं प्रतिवर्ष भारत लाई जाती हैं। सीमा सुरक्षा बल की सुरक्षा की अपनी सीमा है। भारत और नेपाल की सीमा की बात की जाए तो यह 1751 किलोमीटर तक आपस में मिली हुई हैं। इतनी बड़ी सीमा पर नजर रखना किसी सुरक्षा एजेन्सी के लिए मुश्किल है। भारत और नेपाल की सीमा पर यह चुनौती और इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि दोनों सीमाओं के बीच फेंसिंग नहीं हुई है। कोई कंटिला तार नहीं लगाया गया। दोनों तरफ के लोगों का आना जाना बेरोक टोक है, बिना वीजा और पासपोर्ट के। भारत और नेपाल के लोगों के बीच आपसी पारिवारिक रिश्ते भी हैं।
2015 में आए भूकंप में नेपाल का बहुत नुकसान हुआ है। लाखों लोग बेघर हुए और बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार गया। ऐसे में नेपाल और भारत दोनों तरफ इस बात की चिन्ता है कि नेपाल से बच्चे और युवतियों की तस्करी बड़ी संख्या में हो सकती है। बॉर्डर के दोनों तरफ इस मसले पर सतर्कता बरती जा रही है। रक्सौल से मानव तस्करी के शिकार चार बच्चों की बरामदगी के बाद, सुरक्षाकर्मी और अधिक चौकन्ने हो गए हैं और मुस्तैदी बढ़ गई है।
नेपाल में आए भूकम्प के बाद इस बात का अनुमान नेपाल और भारत के अधिकारियों और बॉर्डर पर काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी था और इस मसले पर दोनों तरफ की सरकारें गम्भीर थीं। इसी का परिणाम है कि सीमा पर सुरक्षा अधिकारी ना सिर्फ खुद तैनात हैं, बल्कि वे लगातार सीमा पर सक्रिय एनजीओ के भी संपर्क में हैं। रक्सौल में चार बच्चों को मानव तस्करों से बचाने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए सीमा सुरक्षा बल के डीजी बीडी शर्मा का बयान था- हमें इस वक्त भय है कि मानव तस्करी नेपाल की तरफ से बढ़ सकती है, इसलिए हमने अपनी खुफिया ईकाई को सतर्क कर दिया है और सीमा पर चौकसी तेज कर दी है।
सीमा पर सक्रिय एनजीओ मायती नेपाल ने अपने प्रयासों से सीमा पर दर्जनों बच्चों को तस्करी से बचाया। तस्करों के काम करने के तरीके को समझते हुए , यह अनुमान लगाया जा रहा है कि नेपाल के भूकम्प प्रभावित जिलों में उन अभिभावकों की पहचान तस्कर कर रहे हैं, जिन्होंने नेपाल में भूकम्प आने के बाद अपनी नौकरी खो दी है और आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। ऐसे अभिभावकों को पैसों का प्रलोभन देकर तस्कर बच्चों को अभिभावकों की सहमति से अपने साथ ला रहे हैं। आम तौर पर ऐसे परिवारों को तस्कर अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देते हैं।
नेपाल की गैर सरकारी संस्था ‘शक्ति समूह’ से जुड़ी चारीमाया तामांग कहती हैं- ब्यूटी पार्लर, डांस बार, होटल की वेटर के तौर पर काम करने वाली जो लड़कियां बड़ी संख्या में नेपाल में बेरोजगार हुई हैं, जिनकी संख्या एक लाख से भी अधिक है, यदि इनके लिए रोजगार सृजन नेपाल में नहीं हुआ, तो यह आने वाले दिनों में मानव तस्करों की सबसे आसान शिकार होंगी।
चारीमाया की बात अब सच होती हुई प्रतीत होती है। दिल्ली के महीपालपुर से लेकर गुड़गांव, विकासपुरी, नोएडा, फरीदाबाद में बड़ी संख्या में नेपाल से लड़कियां आई हैं। घरेलू कामकाज के नाम पर लाई गई इन लड़कियों पर देह व्यापार से जुड़ी स्कॉर्ट सर्विस की भी नजर होती है। कम समय में अधिक पैसों के लोभ में और कई बार लम्बी बेरोजगारी की मजबूरी भी युवतियों को देह व्यापार के अंधे कुएं में ले जाती है। पिछले दिनों नेपाल के बच्चे पंजाब में पकड़े गए, जहां इन बच्चों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही थी।
हाल में आए भूकम्प के बाद नेपाल के लिए वर्तमान स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण है। ऐसी स्थिति में मानव तस्करी पर लगाम लगाने के लिए हिल वेलफेयर सोसायटी की शोभा क्षेत्री सुझाव देती हैं- कोई भी महिला या बच्ची नेपाल बॉर्डर को पार कर रही है, तो वह किसके साथ जा रही है, कहां जा रही है, जाने की वजह क्या हैं? जैसे सवालों के जवाबों का सरकारी रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए। सिर्फ इन सवालों का रिकॉर्ड रखा जाए और इस रिकॉर्ड का समय-समय पर फॉलोअप हो तो मानव तस्करी की समस्या पर काफी हद तक लगाम लग सकता है।
बहरहाल, नेपाल में इस वक्त मौजूद ये सारी स्थितियां इस बात की ओर संकेत करती हैं कि यह वक्त सरकार और समाज दोनों के लिए मुस्तैदी का है।